जिंदगी की कड़वी यादें !....


                                           


                                         जिंदगी की कड़वी यादें 

                                 

आज मैं  अपने आप से परेशान होकर   जिंदगी के  68  साल के उस मोड़  पर खड़ा हूँ ,जहाँ  जिन्दगी  की

 सारी जिम्मेदारियाँ  अभी भी मेरे कन्धो  पर हैं.... 


                         


जिंदगी के इस सफर की कहानी कहाँ   से शुरू करू और कहाँ  पर  ख़तम करू ,यही सोच -सोच कर 

 परेशान  हूँ

 |आज मैं  अपने  सफर की कहानी  अपने बचपन की यादों  से  ही शुरू करने जा रहा हूँ ,जो  बहुत रुलाती

 है, वह  बचपन की  यादें जब अकेले  मै याद  आती  हैं| 

अब उस  एक बच्चे  की  कहानी शुरू  होती है जिसका जन्म  1954  मै  होता है, और  जो एक किसान 

 परिवार से है|  वह परिवार एक सम्पन  परिवार है जहाँ  उसके  पिता  और उसके पिता के तीन भाइयों  का

 परिवार  निवास करता है |  इन चार भाईयों   मै  से  तीन भाई भारतीय सेना मै थे, और एक भाई गावँ  मै

 खेती करता है , मेरे पिताजी  जो परिवार /भाइयों  मै सबसे बड़े थे ,  1938  मै  15 साल  की आयु में ही फौज 

 मै  भर्ती हो गये  थे  पिता जी ने  दूसरा विश्व युद्ध की  लड़ाई लड़ी थी  उनका लड़ाई का मैदान  इटली और

 वर्मा  था  |  

1952   मै  पिताजी अपने गाँव  बापस आये , और उसके बाद उनकी शादी  हो गई | और इसके बाद जन्म 

 होता है , एक  बच्चे का जो आज अपनी दास्ताँ लिख रहा है |


  पिताजी  पेंशन आने के बाद  दिल्ली  मै ही एक छोटा सा  काम करने लगे , क्योकि  गांवों  मै  खेती की

 जमीन कम  थी और भाई चार थे, गुजरा होना मुश्किल था , इसलिए पिताजी दिल्ली मै  ही काम करने लग

 पड़े | ऐसे ही  समय मै मेरा और मेरे भाई बहन  का जन्म  दिल्ली  मै  ही हुआ |  


कुछ समय  माता -पिता जी ने वक्त  से  लड़ते हुए  दिल्ली  मै  अपना  आशियाना/घर   भी बना लिया , जो

 उनकी आपसी तालमेल और  मेहनत  का नतीजा था |  मैं  अपने परिवार मै  बड़ा था और जुमेदारियो का

 एहसास/बोझा  भी था, एक नौकरी भी करने लगा था |   जैसे -जैसे वक्त अपने पावों पसारता गया और मै

 उसके साथ-साथ उलझता चला गया | बहन की शादी, अपनी भी शादी  फिर भाइयों की शादी,उस वकत

 माँ और पिता जी का भी साथ था  | कुछ समय बाद माँ और पिता जी का भी साथ छूट गया | 




अब मेरा परिवार भी बड़ा हुआ ,जिसमे 2 -लड़कियों और एक लड़के  जन्म  होता है ,जिससे जिम्मेदारियों

 का और अधिक एहसास बढ़  जाता है | क्योकि बच्चों  की  पढाई और उनके भविष्ये की चिंता और अधिक

 तड़पाने  लगती है |  क्योकि मुझे एहसास हो रहा था की आने वाले वक्त  मै  बच्चो के लिए सरकारी 

 नौकरी  मिलनी मुश्किल है  इसलिए  मुझे साल  2002  मै एक बहुत की मजबूत और कड़वा कदम उठाना

 पड़ा , अपनी  सरकारी नौकरी से  वॉलंटरी  रड़टियरेमेंट  लेकर एक अपना व्यापार  शुरू करने के  लिए

 फेंसला लिया  , जिसके लिया मुझे  बैंक से  कर्जा  भी लेना पड़ा , क्योकि मुझे खुद पर पक्का  विश्वास था  मैं

 एक दिन एक बड़ा व्यापारी बनुगा , जिससे  मेरे बच्चों का भविष्ये  बनेगा | 


यही  मेरी एक ऊँची उड़ान  ने मेरी जिंदगी को कुछ ही वक्त मै  पलट कर रख दिया , यानि जो कारोबार

 2002  मै शुरू किया था वह 2015 तक ख़तम हो गया, जिसने जिंदगी के  सारे सपनों  को  बिखेरकर रख

 दिया था  | फिर से एक नया काम किया नहीं चला ....फिर तीसरी बार एक और काम चालू किया जो 2019

 यानि कोरोना तक आते - आते उसने भी मेरी हिम्मत  तोड़ दी |  जब पलट कर पीछे देखा तो अपना घर भी

  अपना नहीं रहा था | बच्चों  का साथ है पर घर तो उनका भी  वसाना है ,यही  सोच अब दिल मै रहती है 


जन्म  से लेकर आज जब मैं 68 साल की दहलीज़  पर खड़ा हूँ , और आज  मैं पीछे पलट कर   अपने जीवन

 के उस पल को  खोज रहा  हूँ जब कभी शायद खुशियों के झोंकों ने आकर मुझे छुआ हो.... "पर नहीं यह

 तो मेरी भूल हैं "   शायद  वह ऊपर वाला जिसको भगवान कहते है , मेरे लिये ..... मेरे भाग्ये मै खुशियाँ ही 

 लिखना भूल गया हो | 

 लेकिन किसी बजुर्ग ने सही कहा है ---   

     "हम सोचते है सौ  साल  की पर पता नहीं एक पल की घडी का  क्या से  क्या हो जाये " | 

            


        "चाहत तो थी उड़ कर आसमान को छूलू , पर पता नहीं था अपने पंखों  की उड़ान का


      वस एक  सपनों की  तस्बीर ही  बची है, जो संजो कर दिल मै आज भी  रखी है  | 

         हारना नहीं दोस्तों  यह जिंदगी है , आज है कल नहीं है | 


                           बहुत रोकने पर भी दिल कह उठता है 


          "         कल न हम होंगे , न कोई गिला शिकबा होगा ,
                      सिर्फ सिमटी हुई यादों  का सिलसिला होगा , 
                        जाने कल जिंदगी का क्या फैसला होगा           "



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